श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् । अर्थ- हे विश्वरूप! हे विश्वेश्वर! आपको मैं अनेक हाथों, पेटों, मुखों और नेत्रों वाला तथा सब ओर से अनन्त रूपों वाला देख रहा हूँ। मैं आपके न आदि को, न मध्य को और न अन्त को ही देख रहा हूँ। व्याख्या- ‘विश्वरूप’, ‘विश्वेश्वर’- इन दो संबोधनों का तात्पर्य है कि मेरे को जो कुछ भी दिख रहा है, वह सब आप ही हैं और इस विश्व के मालिक भी आप ही हैं। सांसारिक मनुष्यों के शरीर तो जड़ होते हैं और उनमें शरीरी चेतन होता है; परंतु आपके विराट रूप में शरीर और शरीरी- ये दो विभाग नहीं है। विराट रूप में शरीर और शरीरी रूप से एक आप ही हैं। इसलिए विराट रूप में सब कुछ चिन्मय-ही-चिन्मय है। तात्पर्य यह हुआ कि अर्जुन ‘विश्वरूप’ संबोधन देकर यह कह रहे हैं कि आप ही शरीर हैं और ‘विश्वेश्वर’ संबोधन देकर यह कह रहे हैं कि आप ही शरीरी[1] हैं। ‘अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रम्’- मैं आपके हाथों की तरफ देखता हूँ तो आपके हाथ भी अनेक हैं; आपके पेट की तरफ देखता हूँ तो पेट भी अनेक हैं; आपके मुख की तरफ देखता हूँ तो मुख भी अनेक हैं; और आपके नेत्रों की तरफ देखता हूँ तो नेत्र भी अनेक हैं। तात्पर्य है कि आपके हाथों, पेटों, मुखों और नेत्रों का कोई अंत नहीं है, सब-के-सब अनन्त हैं। ‘पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्’- आप देश, काल, वस्तु, व्यक्ति, पदार्थ आदि के रूप में चारों तरफ अनन्त-ही-अनन्त दिखाई दे रहे हैं। ‘नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिम्’- आपका कहाँ अन्त है, इसका भी पता नहीं; आपका कहाँ मध्य है, इसका भी पता नहीं और आपका कहाँ आदि है, इसका भी पता नहीं। सबसे पहले नान्तम् कहने का तात्पर्य यह मालूम देता है कि जब कोई किसी को देखता है, तब सबसे पहले उसकी दृष्टि उस वस्तु की सीमा पर जाती है कि यह कहाँ तक है। जैसे, किसी पुस्तक को देखने पर सबसे पहले उसकी सीमा पर दृष्टि जाती है कि पुस्तक की लम्बाई-चौड़ाई कितनी है। ऐसे ही भगवान के विराट रूप को देखने पर अर्जुन की दृष्टि सबसे पहले उसकी सीमा (अंत) की ओर गयी। जब अर्जुन को उसका अन्त नहीं दिखा, तब उनकी दृष्टि मध्य भाग पर गयी; फिर आदि (आरंभ) की तरफ दृष्टि गयी, पर कहीं भी विराट रूप का अंत, मध्य और आदि का पता नहीं लगा। इसलिए इस श्लोक में ‘नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिम्’- यह क्रम रखा गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शरीर के मालिक
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