श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
इसलिए अर्जुन यहाँ अपनी दृष्टि से कहते हैं कि भगवन! मेरा यह मोह सर्वथा चला गया है। परंतु सा कहने पर भी भगवान ने इसको[2] स्वीकार नहीं किया; क्योंकि आगे उनचासवें श्लोक में भगवान ने अर्जुन से कहा है कि तेरे को व्यथा और मूढ़भाव (मोह) नहीं होना चाहिए- ‘मा ते व्यथा मा च विमूढभावः।’ संबंध- मोह कैसे नष्ट हो गया- इसी को आगे के श्लोक में विस्तार से कहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मोह के रहते हुए मोह का ज्ञान नहीं होता, प्रत्युत मोह के चले जाने पर ही मोह का ज्ञान होता, और ज्ञान होने पर मोह रहता ही नहीं।
- ↑ अर्जुन के मोहनाश को
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