श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
इसका समाधान यह है कि वास्तव में विभूतियाँ कहने में भगवान का तात्पर्य किसी वस्तु, व्यक्ति आदि की महत्ता बताने में नहीं है, प्रत्युत अपना चिन्तन कराने में है। अतः गीता और भागवत- दोनों ही जगह कही हुई विभूतियों में भगवान का चिन्तन करना ही मुख्य है। इस दृष्टि से जहाँ-जहाँ विशेषता दिखाई दे, वहाँ-वहाँ वस्तु, व्यक्ति आदि की विशेषता न देखकर केवल भगवान की ही विशेषता देखनी चाहिए और भगवान की ही तरफ वृत्ति जानी चाहिए। संबंध- अब आगे के श्लोक में भगवान अपनी दिव्य विभूतियों के कथन का उपसंहार करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ग्यारहवें स्कन्ध के सोलहवें अध्याय में
- ↑ गीता 10:24
- ↑ 11।16।22
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