श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् । अर्थ- गायी जाने वाली श्रुतियों में बृहत्साम और वैदिक छन्दों में गायत्री छन्द मैं हूँ। बारह महीनों में मार्गशीर्ष और छः ऋतुओं में वसन्त मैं हूँ। व्याख्या- ‘बृहत्साम तथा सामहम्’- सामवेद में बृहत्साम नामक एक गीति है। इसके द्वारा इंद्ररूप परमेश्वर की स्तुति की गयी है। अतिरात्रयाग में यह एक पृष्ठस्तोत्र है। सामवेद में सबसे श्रेष्ठ होने से इस बृहत्साम को भगवान ने अपनी विभूति बताया है।[1] ‘गायत्री छन्दसामहम्’- वेदों की जितनी छन्दोबद्ध ऋचाएँ हैं, उनमें गायत्री की मुख्यता है। गायत्री को वेद-जननी कहते हैं; क्योंकि इसी से वेद प्रकट हुए हैं। स्मृतियों और शास्त्रियों में गायत्री की बड़ी भारी महिमा गायी गयी है। गायत्री में स्वरूप, प्रार्थना और ध्यान- तीनों परमात्मा के ही होने से इससे परमात्मतत्त्व की प्राप्ति होती है। इसलिए भगवान ने गायत्री को अपनी विभूति बताया है। ‘मासानां मार्गशीर्षोऽहम्’- जिस अन्न से संपूर्ण प्रजा जीवित रहती है, उस (वर्षा से होने वाले) अन्न की उत्पत्ति मार्गशीर्ष महीने में होती है। इस महीने में नये अन्न से यज्ञ भी किया जाता है। महाभारत-काल में नया वर्ष मार्गशीर्ष से ही आरंभ होता था। इन विशेषताओं के कारण भगवान ने मार्गशीर्ष को अपनी विभूति बताया है। ‘ऋतूनां कुसुमाकरः’- वसन्त ऋतु में बिना वर्षा के ही वृक्ष, लता आदि पत्र-पुष्पों से युक्त हो जाते हैं। इस ऋतु में न अधिक गरमी रहती है और न अधिक कहा है। इन सब विभूतियों में जो महत्ता, विशेषता दिखती है, वह केवल भगवान की ही है। अतः चिन्तन भगवान का ही होना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इस (दसवें) अध्याय के बाईसवें श्लोक में भगवान ने वेदों में ‘सामवेद’ को अपनी विभूति बताया है और यहाँ (पैंतीसवें श्लोक में) भगवान ने सामवेद में भी ‘बृहत्साम’ को अपनी विभूति बताया है।
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