श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् । अर्थ- आयुधों में वज्र और धेनुओं में कामधेनु मैं हूँ। सन्तान- उत्पत्ति का हेतु कामदेव मैं हूँ और सर्पों में वासुकि मैं हूँ। व्याख्या- ‘आयुधानामहं वज्रम्’- जिनसे युद्ध किया जाता है, उनको आयुध (अस्त्र-शस्त्र) कहते हैं। उन आयुधो में इंद्र का वज्र मुख्य है। यह दधीचि ऋषि की हड्डियों से बना हुआ है और इसमें दधीचि ऋषि की तपस्या का तेज है। इसलिए भगवान ने वज्र को अपनी विभूति कहा है। ‘धेनूनामस्मि कामधुक्’- नयी ब्यायी हुई गाय को धेनु कहते हैं। सभी धेनुओं में कामधेनु मुख्य है, जो समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी। यह संपूर्ण देवताओं और मनुष्यों की कामनापूर्ति करने वाली है। इसलिए यह भगवान की विभूति है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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