श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् । अर्थ- घोड़ों में अमृत के साथ समुद्र से प्रकट होने वाले उच्चैःश्रवा नामक घोड़े को, श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी को और मनुष्यों में राजा को मेरी विभूति मानो। व्याख्या- ‘उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम्’- समुद्र मन्थन के समय प्रकट होने वाले चौदह रत्नों में उच्चैःश्रवा घोड़ा भी एक रत्न है। यह इंद्र का वाहन और संपूर्ण घोड़ों का राजा है। इसलिए भगवान ने इसको अपनी विभूति बताया है। ‘ऐरावतं गजेन्द्राणाम्’- हाथियों के समुदाय में जो श्रेष्ठ होता है, उसको गजेंद्र कहते हैं। ऐसे गजेंद्रों में भी ऐरावत हाथी श्रेष्ठ है। उच्चैःश्रवा घोड़े की तरह ऐरावत हाथी की उत्पत्ति भी समुद्र से हुई है और यह भी इंद्र का वाहन है। इसलिए भगवान ने इसको अपनी विभूति बताया है। ‘नराणां च नराधिपम्’- संपूर्ण प्रजा का पालन, संरक्षण, शासन करने वाला होने से राजा संपूर्ण मनुष्यों में श्रेष्ठ है। साधारण मनुष्यों की अपेक्षा राजा में भगवान की ज्यादा शक्ति रहती है। इसलिए भगवान ने राजा को अपनी विभूति बताया है।[1] इन विभूतियों में जो बलवत्ता, सामर्थ्य है, वह भगवान से ही आयी है, अतः उसको भगवान की ही मानकर भगवान का चिन्तन करना चाहिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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