श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः । अर्थ- संपूर्ण वृक्षों में पीपल, देवर्षियों में नारद, गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि मैं हूँ। व्याख्या- ‘अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम्- पीपल एक सौम्य वृक्ष है। इसके नीचे हरेक पेड़ लग जाता है, और यह पहाड़, मकान की दीवार, छत आदि कठोर जगह पर भी पैदा हो जाता है। पीपल वृक्ष के पूजन की बड़ी महिमा है। आयुर्वेद में बहुत-से रोगों का नाश करने की शक्ति पीपल वृक्ष में बतायी गयी है। इन सब दृष्टियों से भगवान ने पीपल को अपनी विभूति बताया है। ‘देवर्षीणां च नारदः’- देवर्षि भी कई है और नारद भी कई हैं; पर ‘देवर्षि नारद’ एक ही हैं। ये भगवान के मन के अनुसार चलते हैं और भगवान को जैसी लीला करनी होती हैं ये पहले से ही वैसी भूमिका तैयार कर देते हैं। इसलिए नारद जी को भगवान का मन कहा गया है। ये सदा वीणा लेकर भगवान के गुण गाते हुए घूमते रहते हैं। वाल्मीकि और व्यास जी को उपदेश देकर उनको रामायण और भागवत- जैसे ग्रंथों के लेखन कार्य में प्रवृत्त कराने वाले भी नारद जी ही हैं। नारद जी की बात पर मनुष्य, देवता, असुर, नाग आदि सभी विश्वास करते हैं। सभी इनकी बात मानते हैं और इनसे सलाह लेते हैं। महाभारत आदि ग्रंथों में इनके अनेक गुणों का वर्णन किया गया है। यहाँ भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘गन्धर्वाणां चित्ररथः’- स्वर्ग के गायकों को गन्धर्व कहते हैं और उन सभी गंधर्वों में चित्ररथ मुख्य हैं। अर्जुन के साथ इनकी मित्रता रही और इनसे ही अर्जुन ने गानविद्या सीखी थी। गानविद्या में अत्यंत निपुण और गन्धर्वों में मुख्य होने से भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। ‘सिद्धानां कपिलो मुनिः’- सिद्ध दो तरह के होते हैं- एक तो साधन करके सिद्ध बनते हैं और दूसरे जन्मजात सिद्ध होते हैं। कपिल जी जन्मजात सिद्ध हैं और इनको आदिसिद्ध कहा जाता है। ये कर्दम जी के यहाँ देवहूति के गर्भ से प्रकट हुए थे। ये संख्या के आचार्य और संपूर्ण सिद्धों के गणाधीश हैं। इसलिए भगवान ने इनको अपनी विभूति बताया है। इन सब विभूतियों में जो विलक्षणता प्रतीत होती है, वह मूलतः तत्त्वतः भगवान की ही है। अतः साधक की दृष्टि भगवान में ही रहनी चाहिए। |
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