श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः । अर्थ- जो मनुष्य मेरी इस विभूति को और योग को तत्त्व से जानता अर्थात दृढ़ता पूर्वक मानता है, वह अविचल भक्तियोग से युक्त हो जाता है; इसमें कुछ भी संशय नहीं है। व्याख्या- ‘एतां विभूतिं योगं च मम’- ‘एताम्’ सर्वनाम अत्यंत समीप का लक्ष्य कराता है। यहाँ यह शब्द चौथे से छठे श्लोक तक कही हुई विभूति और योग का लक्ष्य कराता है। ‘विभूति’ नाम भगवान के ऐश्वर्य का है और ‘योग’ नाम भगवान की अलौकिक विलक्षण शक्ति, अनन्त सामर्थ्य का है। तात्पर्य यह हुआ कि भगवान की शक्ति का नाम ‘योग’ है और उस योग से प्रकट होने वाली विशेषताओं का नाम ‘विभूति’ है। चौथे से छठे श्लोक तक कही हुई भाव और व्यक्ति के रूप में जितनी विभूतियाँ हैं, वे तो भगवान के सामर्थ्य से, प्रभाव से प्रकट हुई विशेषताएँ हैं और ‘मेरे से पैदा होते हैं’ (‘मत्तः’; ‘मानसा जाताः’)- यह भगवान का योग है, प्रभाव है। इसी को नवें अध्याय के पाँचवें श्लोक में ‘पश्य मे योगमैश्वरम्’[1] पदों से कहा गया है। ऐसे ही आगे ग्यारहवें अध्याय के आठवें श्लोक में अर्जुन को विश्वरूप दिखाते समय भगवान ने ‘पश्य मे योगमैश्वरम्’ पदों से अपना ऐश्वर्यमय योग देखने के लिए कहा है। जब मनुष्य भोग-बुद्धि से भोग भोगता है, भोगों से सुख लेता है, तब अपनी शक्ति का ह्रास और भोग वस्तु का विनाश होता है। इस प्रकार दोनों तरफ से हानि होती है। परंतु जब वह भोगों को भोगबुद्धि से नहीं भोगता अर्थात उसके भीतर भोग भोगने की किञ्चिन्मात्र भी लालसा उत्पन्न नहीं होती, तब उसकी शक्ति का ह्रास नहीं होता। उसकी शक्ति, सामर्थ्य निरंतर बनी रहती है। वास्तव में भोगों के भोगने में सुख नहीं है। सुख है- भोगों के संयम में। यह संयम दो तरह का होता है- (1) दूसरों पर शासन रूप संयम और (2) अपने पर शासन रूप संयम। दूसरों पर शासन रूप संयम का तात्पर्य है- ‘दूसरों का दुःख मिट जाए और वे सुखी हो जाएँ’- इस भाव से दूसरों को उन्मार्ग से बचाकर सन्मार्ग पर लगाना। अपने पर शासनरूप संयम का तात्पर्य है- ‘अपने स्वार्थ तथा अभिमान का त्याग करना और स्वयं किञ्चिन्मात्र भी सुख न भोगना।’ इन्हीं दोनों संयमों का नाम ‘योग’ अथवा ‘प्रभाव’ है। ऐसा योग अथवा प्रभाव सर्वोपरि परमात्मा में स्वतः- स्वाभाविक होता है। दूसरों में यह साधन-साध्य होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मेरे इस ईश्वरीय योग को देख
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज