श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
प्रथम अध्याय
उत्तर- महावीर हनुमान जी भीमसेन को वचन दे चुके थे,[1] इसलिये वे अर्जुन के रथ की विशाल ध्वजा पर विराजित रहते थे और युद्ध में समय-समय पर बड़े जोर से गरजा करते थे।[2] यही बात धृतराष्ट्र को याद दिलाने के लिये संजय ने अर्जुन के लिये ‘कपिध्वज’ विशेषण का प्रयोग किया है। प्रश्न- अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-सम्बन्धियों को देखकर चलने की तैयारी के समय धनुष उठा लिया, इस कथन का स्पष्टीकरण कीजिये? उत्तर- अर्जुन ने जब यह देखा कि दुर्योधन आदि सब भाई कौरव-पक्ष के समस्त योद्धाओं सहित युद्ध के लिये सज-धजकर खड़े हैं और शस्त्रप्रहार के लिये बिल्कुल तैयार हैं, तब अर्जुन के मन में भी वीर-रस जग उठा तथा इन्होंने भी तुरंत अपना गाण्डीव धनुष उठा लिया। प्रश्न- संजय ने यहाँ भगवान् को पुनः हृषीकेश क्यों कहा? उत्तर- भगवान् को हृषीकेश कहकर संजय महाराज धृतराष्ट्र को यह सूचित कर रहे हैं कि इन्द्रियों के स्वामी साक्षात् परमेश्वर श्रीकृष्ण जिन अर्जुन के रथ पर सारथि का काम कर रहे हैं, उनसे युद्ध करके आप लोग विजय की आशा करते हैं- यह कितना बड़ा अज्ञान है! प्रश्न- अपने रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा करने के लिये अनुरोध करते समय अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण को ‘अच्युत’ नाम से सम्बोधन किया, इसका क्या हेतु है? उत्तर- जिसका किसी समय भी पराभव या पतन न हो अथवा जो अपने स्वरूप, शक्ति और महत्त्व से सर्वथा तथा सर्वदा अस्खलित रहे- उसे ‘अच्युत’ कहते हैं। अर्जुन इस नाम से सम्बोधित करके भगवान् की महत्ता के और उनके स्वरूप के सम्बन्ध में अपने ज्ञान को प्रकट करते हैं। वे कहते हैं कि आप रथ हाँक रहे हैं तो क्या हुआ, वस्तुतः आप सदा-सर्वदा साक्षात् परमेश्वर ही हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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