प्रथम अध्याय
प्रश्न- कृपाचार्य कौन थे?
उत्तर- ये गौतमवंशीय महर्षि शरद्वान् के पुत्र हैं। ये धनुर्विद्या के बड़े पारदर्शी और अनुभवी हैं। इनकी बहिन का नाम कृपी था। महाराज शान्तनु ने कृपा करके इन्हें पाला था। इससे इनका नाम कृप और इनकी बहिन का नाम कृपी हुआ। ये वेदशास्त्र के ज्ञाता, धर्मात्मा तथा सद्गुणों से सम्पन्न सदाचारी पुरुष हैं। द्रोणाचार्य से पूर्व कौरव-पाण्डवों को और यादवादि को धनुर्वेद की शिक्षा दिया करते थे। समस्त कौरववंश के नाश हो जाने पर भी ये जीवित रहे, इन्होंने परीक्षित् को अस्त्रविद्या सिखलायी। ये बड़े ही वीर और विपक्षियों पर विजय प्राप्त करने में निपुण हैं। इसीलिये इनके नाम के साथ ‘समितिन्जयः’ विशेषण लगाया गया है।
प्रश्न- अश्वत्थामा कौन थे?
उत्तर- अश्वत्थामा आचार्य द्रोण के पुत्र हैं। ये शस्त्रास्त्रविद्या में अत्यन्त निपुण, युद्धकला में प्रवीण बड़े ही शूरवीर महारथी हैं। इन्होंने भी अपने पिता द्रोणाचार्य से ही युद्ध-विद्या सीखी थी।
प्रश्न- विकर्ण कौन थे?
उत्तर - धृतराष्ट्र के दुर्योधनादि सौ पुत्रों में से ही एक का नाम विकर्ण था। ये बड़े धर्मात्मा, वीर और महारथी थे। कौरवों की राजसभा में अत्याचार पीड़िता द्रौपदी ने जिस समय सब लोगों से पूछा कि ‘मैं हारी गयी या नहीं’, उस समय विदुर को छोड़कर शेष सभी सभासद चुप हो रहे। एक विकर्ण ही ऐसे थे, जिन्होंने सभा में खड़े होकर बड़ी तीव्र भाषा में न्याय और धर्म के अनुकूल स्पष्ट कहा था कि ‘द्रौपदी के प्रश्न का उत्तर न दिया जाना बड़ा अन्याय है। मैं तो समझता हूँ कि द्रौपदी हम लोगों के द्वारा जीती नहीं गयी है।’[1]
प्रश्न- सौमदत्ति कौन थे?
उत्तर- सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा को ‘सौमदत्ति’ कहा करते थे। ये शान्तनु के बड़े भाई बाल्हीक के पौत्र थे। ये बड़े ही धर्मात्मा, युद्धकला में कुशल और शूरवीर महारथी थे। इन्होंने बड़ी-बड़ी दक्षिणा वाले अनेक यज्ञ किये थे। ये महाभारत-युद्ध में सात्यकि के हाथ से मारे गये।
प्रश्न- ‘तथा’ और ‘एव’- इन दोनों अव्यय पदों के प्रयोग का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- इन दोनों अव्ययों का प्रयोग करके यह दिखलाया गया है कि अश्वत्थामा, विकर्ण और भूरिश्रवा भी कृपाचार्य के समान ही संग्रामविजयी थे।
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