श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
सम्बन्ध - इस प्रकार अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए गीता के उपदेश की और भगवान् के अद्भुत रूप की स्मृति का महत्त्व प्रकट करके, अब संजय धृतराष्ट्र से पाण्डवों की विजय की निश्चित सम्भावना प्रकट करते हुए इस अध्याय का उपसंहार करते हैं- यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर: ।
उत्तर - धृतराष्ट्र के मन में संधि की इच्छा उत्पन्न करने के उद्देश्य इस श्लोक में उपयुक्त विशेषणों के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन का प्रभाव बतलाते हुए पाण्डवों विजयी निश्चित सम्भावना प्रकट करते हैं। अभिप्राय यह है कि भगवान श्रीकृष्ण समस्त योगशक्तियों के स्वामी है; वे साक्षात नारायण भगवान श्रीकृष्ण जिस धर्मराज युधिष्ठिर के सहायक हैं, उसकी विजय में क्या सका है। इसके सिवा अर्जुन भी नर ऋषि के अवतार भगवान के प्रिय सखा और गाण्डीव-धनुष धारण करने वाले महान वीर पुरुष हैं; वे भी अपने भाई युधिष्ठिर विजय के लिये कटिबद्ध है। अत: आज उस युधिष्ठिर की बराबरी दूसरा कौन कर सकता है; क्योकि जहाँ सूर्य रहता है, प्रकाश उसके साथ ही रहता हैं- उसी प्रकार जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन रहते हैं वहीं सम्पूर्ण शोभा, सारा ऐश्वर्य और अटल न्याय (धर्म)- ये सब रहता है, उसकी विजय होती है। अत: पाण्डवों की विजय में किसी प्रकार की शका नहीं है। यदि अब भी तुम अपना कल्याण चाहते हो तो अपने पुत्रों को समझाकर पाण्डवों संधि कर लो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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