श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
उत्तर- स्वयं भगवान् में या उनके वचनों में अतिशय श्रद्धायुक्त होकर एवं भगवान् के नाम, गुण, लीला, प्रभाव और स्वरूप की स्मृति से उनके प्रेम में विह्वल होकर केवल भगवान् की प्रसन्नता के ही लिये निष्कामभाव से उपर्युक्त भगवद्भक्तों में इस गीताशास्त्र का वर्णन करना अर्थात् भगवान् के भक्तों को इसके मूल श्लोकों का अध्ययन कराना, उनकी व्याख्या करके अर्थ समझाना, शुद्ध पाठ करवाना, उनके भावों को भलि-भाँति प्रकट करना और समझाना, श्रोताओं की शंकाओं का समाधान करके गीता के उपदेश को उनके हृदय में जमा देना और गीता के उपदेशानुसार चलने की उनमें दृढ़ भावना उत्पन्न कर देना आदि सभी क्रियाएँ भगवान् में परम प्रेम करके भगवान् के भक्तों में गीता का उपदेश कथन करने के अन्तर्गत आ जाती हैं। प्रश्न- वह मुझको ही प्राप्त होगा- इसमें कोई संदेह नहीं है, इस वाक्य का क्या भाव है? उत्तर- इससें भगवान् ने यह भाव दिखलाया है कि इस प्रकार जो भक्त केवल मेरी भक्ति के ही उद्देश्य से निष्कामभाव से मेरे भावों का अधिकारी पुरुषों में विस्तार करता है, वह मुझे प्राप्त होता है- इसमें किंचिन्मात्र भी सन्देह नहीं है- अर्थात् यह मेरी प्राप्ति का ऐकान्तिक उपाय है; इसलिये मेरी प्राप्ति चाहने वाले अधिकारी भक्तों को इस गीताशास्त्र के कथन तथा प्रचार का कार्य अवश्य करना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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