अष्टादश अध्याय
प्रश्न- यहाँ ‘तदनन्तरम्’ पद का अर्थ तत्काल कैसे किया गया? ‘ज्ञात्वा’ पद के साथ ‘तदनन्तरम्’ पद का प्रयोग किया गया है, इससे तो ‘विशते’ क्रिया का यह भाव लेना चाहिये कि पहले मनुष्य भगवान के स्वरूप को यथार्थ जानता है और उसके बाद उसमें प्रविष्ट होता है?
उत्तर- ऐसी बात नहीं है; किंतु ‘ज्ञात्वा’ पद से जो काल के व्यवधान की आशंका होती थी, उसे दूर करने के लिये ही यहाँ ‘तदनन्तरम्’ पद का प्रयोग किया गया है। अभिप्राय यह है कि भगवान के तत्त्वज्ञान और उनकी प्राप्ती में अन्तर यानी व्यवधान नहीं होता, भगवान के स्वरूप को यथार्थ जानना और उसमें प्रविष्ट होना- दोनों एक साथ होते हैं। भगवान सबके आत्मरूप होने से वास्तव में किसी को अप्राप्त नहीं हैं, अतः उसके यथार्थ स्वरूप का ज्ञान होने के साथ ही उसकी यथार्थ प्राप्ती हो जाती है। इसलिये यह भाव समझाने के लिये ही यहाँ ‘तदनन्तरम्’ पद का अर्थ ‘तत्काल’ किया गया है; क्योंकि कालान्तर का बोध तो ‘ज्ञात्वा’ पद से ही हो जाता है, उसके लिये ‘तदनन्तरम्’ पद के प्रयोग की आवश्यकता नहीं थी।
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