श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत: ।
उत्तर- जिस शास्त्र में सत्त्व, रज और तम- इन तीनों गुणों के सम्बन्ध से समस्त पर्दों के भिन्न-भिन्न भेदों की गणना की गई हो, ऐसे शास्त्र का वाचक ‘गुणसङ्ख्याने’ पद है। अतः उसमें बतलाये हुए गुणों के भेद से तीन-तीन प्रकार के ज्ञान, कर्म और कर्ता को सुनने के लिये कहकर भगवान् ने उस शास्त्र को इस विषय में आदर दिया है और कहे जाने वाले उपदेश को ध्यानपूर्वक सुनने के लिये अर्जुन को सावधान किया है। ध्यान रहे कि ज्ञाता और कर्ता अलग-अलग नहीं हैं, इस कारण भगवान् ने ज्ञाता के भेद अलग नहीं बतलाये हैं तथा करण के भेद बुद्धि के और धृति के नाम से एवं ज्ञेय के भेद सुख के नाम से आगे बतलायेंगे। इस कारण यहाँ पूर्वोक्त छः पदार्थों में से तीन के ही भेद पहले बतलाने का संकेत किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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