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जो जहाँ सुनता, वहीं से दौड़ पड़ता एक बार नन्द नन्दन को उल्लास में भरकर वृक्षों पर वानरों की भाँति कूदते हुए देख लेने के उद्देश्य से। इस प्रकार व्रज में मधुरातिमधुर विविध परम रसमय संस्मरण की निधि बिखेरते हुए व्रजराज कुमार लीला सिन्धु में संतरण कर रहे थे और अब उनके बाल्यवयस का अवसान हो चुका था।
- एवं विहारै: कौमारै: कौमारं जहतुर्व्रजे।
- निलायनै सेतुबंधैर्मर्कटोत्प्लवनादिभि:॥[1]
- चौर भाव बहु आनि, सेतुबंध, मरकट-क्रिया।
- अपर खेल सुख मानि, खेलत गयौ कुमार वय।।
- इमि बिहार करि कृष्न ब्रज, सब काहू सुख दीन।
- यह कुमार वय की कथा, वरनी तोहि प्रवीन।।
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