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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
50. ब्रह्मा जी के द्वारा पहले गोवत्सों का अपहरण और श्रीकृष्ण के उन्हें ढूँढ़ने निकलने पर गोपबालकों का भी अपसारणः श्रीकृष्ण की उन्हें ढूँढ़ निकालने में असमर्थता तथा अन्त में सर्वज्ञताशक्ति द्वारा सब कुछ जान लेना
अस्तु, कहाँ तो वनस्थली शिशुओं के आनन्द कोलाहल से मुखरित हो रही थी और अब वहीं सहसा एक गम्भीर नीरवता छा गयी। अपने गोवत्सों को न देखकर एक बार तो सभी बालक अतिशय संत्रस्त हो उठे-
किन्तु कतिपय वयस्क बालकों ने तुरंत अपने को सँभाला। उनके ध्यान में वस्तुस्थिति आने लग गयी और वे बोले- ‘अरे भैया कृष्ण! देख, हम सभी चिन्तित हो रहे हैं, एक भी गोवत्स नहीं दीख पड़ता। प्रतीत होता है- नवीन तृणांकुरों की लालसा से वे सब अभिभूत हो गये हैं। इसीलिये तनिक भी आलस्य न कर- कहीं भी रुके बिना ही वे सब बहुत दूर चले गये हैं। अत एव अब हम लोगों को भी उनका अनुसंधान पाने के लिये एवं फिर उन्हें हाँक कर वन की सीमा पर हम ले आयें, इस उद्देश्य से उधर ही चलना चाहिए।’ |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीआनन्दवृन्दावनचम्पूः)
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