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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
36. यात्रा के अन्त में यात्रियों का यमुना-तट पर रात्रि-विश्राम तथा रात्रि के शेष होने पर यमुना-पार जाने का उपक्रम
जिस प्रकार बृहद्वन से यात्रा आरम्भ हुई थी, सभी अपने-अपने गो-महिषों को एकत्र कर, सामग्री को शकटों पर आरोपित कर चले थे-
उसी प्रकार इस विश्राम शिबिर से भी चल पड़ने के लिये व्रजपुरवासी प्रस्तुत होने लगते हैं। किरणोदय होने पर यमुना को पार जो करना है। उपनन्द का यही आदेश सबको कल ही शयन से पूर्व मिल चुका है। फिर भी दल की दल गोपसुन्दरियाँ एक बार नन्दनन्दन का मुखचन्द्र निहार लेने के लिये विविध बहानों से व्रजरानी के शिबिर में आ रही हैं। श्रीकृष्णचन्द्र भी आज अपने-आप ब्राह्ममुहूर्त में ही जाग गये हैं। उनका दर्शन पाकर व्रजपुरन्ध्रियाँ कृतार्थ हो रही हैं। पूर्णगमन अरुण राग से रंजित होने लगता है। व्रजेश्वर अपने इष्टदेव नारायण की अर्चना में संलग्न हैं। व्रजेश्वरी नीलमणि को अंक में धारण किये अतिशय संनिकट यमुना प्रवाह में स्नान करने जा रही हैं। उस समय तप नतनया श्रीयमुना की शोभा भी देखने ही योग्य है-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।11।30)
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