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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
35. वृन्दावन-यात्रा का वर्णन
इसका उत्तर जननी न देकर रोहिणी मैया देती हैं-
मेरे लाल! यमुना के उस पार! फिर तो यमुना के सम्बन्ध में अनेकों प्रश्नोत्तर चलते हैं। पूर्ण संतोष हो जाने पर श्रीकृष्णचन्द्र इस बार श्रीरोहिणी से ही पूछने लगे-
‘छोटी मैया! ठीक है; यह बताओ-आखिर वृन्दावन में ऐसी कौन-सी सुख-सम्पत्ति है, जो हमलोग इतना प्रयास उठाकर वहाँ जा रहे हैं?’ रोहिणी मैया बोलीं-
‘मेरे लाल! वहाँ अनेकों क्रीडा-स्थान हैं। क्रीडा सामग्रियाँ भी वहाँ बहुत हैं।’ यह उत्तर सुनकर तो श्रीकृष्णचन्द्र आनन्द से नाच उठते हैं। कदाचित शकट पर न होते हो वे अभी उस दिशा की ओर भाग छूटते। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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