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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
32. वृक्षों के टूट जाने पर भी श्रीकृष्ण को अक्षत पाकर माता-पिता का उल्लास
जितनी गोपसुन्दरियाँ खड़ी हैं, सबके नेत्र बरसने लगते हैं-
आकाश में नक्षत्रपंक्ति आ विराजी है। नीलमणि की व्यारू का समय हो चुका है। मैया थाल सजाने उठ पड़ती हैं। क्षणों में वे स्पर्णथाल को विविध पक्वान्न से पूर्णकर अपने नीलमणि के सामने रख देती हैं, नीलमणि भोजन आरम्भ करते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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