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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
32. वृक्षों के टूट जाने पर भी श्रीकृष्ण को अक्षत पाकर माता-पिता का उल्लास
व्रजेश्वरी की भी यही दशा है। साथ ही उन्हें ऊखल में बँधे अपने नीलमणि की स्मृति हो आयी है। श्रीकृष्णचन्द्र का उन्हें विस्मरण हो गया हो, यह बात नहीं। केवल अभी कुछ देर पहले लीलाशक्ति ने उनके एवं नीलमणि के बीच में अपना आँचल फैला रखा था, उसकी ओट में मैया अपने जीवनधन को देखकर भी अच्छी तरह नहीं देख पा रही थीं। पर अब अंचल हट चुका था, उसकी आवश्यकता नहीं रही थी। इसीलिये मैया को मानो वहीं से, कक्ष की मणिभित्ति का व्यवधान रहने पर भी नीलमणि के स्पष्ट दर्शन होने लगे हैं। मैया उस समय भी अपने नीलमणि को खिलाने के लिये दधिमन्थन ही कर रही थीं, पर अब अवकाश कहाँ! तृणावर्त के समय भी ऐसी-सी ध्वनि हुई थी-इस संस्कार के जागने में देर थोड़े लगी। मैया मन्थनदण्ड को फेंककर विद्युद्गति से वहाँ उस स्थान पर जा पहुँचती हैं, जहाँ वे अपने नीलमणि को ऊखल से बाँध गयी थीं। वहाँ तो कोई है ही नहीं। हाँ, उससे कुछ ही दूर पर वे गोपशिशु कोलाहल कर रहे हैं और वे प्रकाण्ड यमलार्जुन वृक्ष धराशायी पड़े हैं- यह मैया को दीख गया। ‘आह! मेरा नीलमणि कहाँ है?’- मैया इतना ही सोच पायीं। फिर तो अंगों में रक्तसंचार स्थगित हो गया। उस समय उनके प्राण कहाँ थे? धमनियों में रक्त का प्रवाह न रहने पर भी वे निष्पन्दप्रस्तर प्रतिमा की भाँति ज्यों की त्यों खड़ी कैसे रहीं? इनका समाधान तो सम्भव नहीं, पर मैया की स्थिति इस समय ठीक ऐसी ही है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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