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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
30. यमलार्जुन के अतीत जन्म की कथा; यमलार्जुन-उद्धार
अस्तु, जहाँ वे वृक्ष थे, वहाँ एक परम उज्ज्वल ज्योति चमक उठती है। मानो दो वृक्षों के मध्य में दावानल भभक उठा। फिर दोनों की ज्योति एकत्र मिल जाय, उनसे दिशाएँ आलोकित हो जायँ, इस प्रकार अपनी सम्मिलित ज्योति से दसों दिशाओं को उद्भासित करते हुए सिद्धपुरुष उनके अन्तराल से प्रकट होते हैं और उलूखल निबद्ध श्रीकृष्णचन्द्र की ओर चल पड़ते हैं-
ये युगल सिद्ध और कोई नहीं, धनदपुत्र नलकूबर एवं मणिग्रीव हैं, श्रीकृष्णचन्द्र के चरणों में न्योछावर होने जा रहे हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।10।28)
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