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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
25. ग्वालिनों के उपालम्भ पर माँ यशोदा की चिन्ता और उलाहना देनेवाली पर खीझ
श्रीकृष्णचन्द्र गोपसुन्दरियों के घर इतना अधिक उत्पात करने लगे थे कि एक-न-एक गोपी उलाहना देने के लिये नन्दभवन में आयी हुई रहती ही थी। व्रजरानी भी यह अच्छी तरह जानती थीं कि उहालने का तो मिस है, वास्तव में यह आयी है मेरे नीलमणि को देखने। व्रजेश्वर को भी यह पता लग गया था; क्योंकि एक दिन एक वयस्का गोपी उनके सामने ही व्रजरानी को उलाहना देने लगी-
सुनकर व्रजेश्वर के मुख पर तो ग्लानि की छाया-सी पड़ गयी। पर यशोदारानी हँस पड़ीं। हँसकर उन्होंने व्रजराज को सारा रहस्य समझा दिया-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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