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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
22. माखन चोरी के व्याज से श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण व्रज में रस-सरिता बहाना
उनकी मधुर चंचल चेष्टाओं का दर्शन करके आभीरसुन्दरियाँ भी आनन्दविवश हो जा रही हैं। उनका आन्दवर्धन करने के लिये वे कभी उन्हें रोकना भी चाहती हैं, तो बोल नहीं पातीं, आनन्द से कण्ठ सर्वथा रुद्ध हो जाता है-
किंतु व्रजसुन्दरियों के मन में अब एक बात आयी-‘श्रीकृष्णचन्द्र की इन चंचल चेष्टाओं का आस्वादन हम सबों को तो प्राप्त हो रहा है, हम सभी आनन्द में डूब- उतरा रही हैं; पर व्रजरानी तो इस सुख से वंचित ही रहीं! नीलमणि अपने गृह में तो चंचलता करते नहीं।’ बस, यह विचार उदय होते ही उन सबने मन-ही-मन कार्यक्रम स्थिर कर लिया-उलाहने का मिस लेकर हम सब जायँ एवं नीलमणि की प्रत्येक चेष्टा का वर्णन कर व्रजरानी को भी परमानन्द सिन्धु में निमग्न कर दें। हृदय की यह भावना मूर्त होने चली, गोपसुन्दरियाँ परस्पर एक-दूसरे को परामर्श देने लगीं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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