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चंचल श्रीकृष्णचन्द्र की एवं बलराम की तो अब दिनचर्या ही हो गयी है- निरन्तर खेलना; तथा जननी यशोदा का भी एक ही कार्यक्रम रहा है- सूत्र में बँधी हुई-सी निरन्तर पुत्रों के पीछे-पीछे घूमते रहना-
- थिर न रहन, खेलत दोउ भाई, अमित खेल अति नाधैं।
- उठत चलत वैठत भ्रमि धावत अति चंचल गति साधैं।।
- जहँ-जहँ फिरत जुगल मृदु प्यारे बाल खेल मति काछैं।
- तहँ-तहँ जननी दृष्टि मोहसों लगी फिरत हित पाछैं।।
- बाल झलन में ललन कबहुँ मिलि जात चौहटन आगैं।
- अन्तर अम्बु परत तलफत ज्यों मीन दीन दृग लागैं।।
- जननी उठि टेरैं नहिं हेरैं, फेरे फिरैं न आवैं।
- स्त्रवत छीर धारा धावैं गहि मोहन कंठ लगावैं।।
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