|
आज इतने दिन बाद वह यमुना तट पर स्नान करते समय एक समवयस्का सखी को अपने इस विचित्र परिवर्तन का रहस्य बता रही है-
- अद्भुत इक चितयौ हौं सजनी, नंदमहर कें आँगन री।
- सो मैं निरखि अपुनपौ खोयौ, गई मथानी माँगन री।।
- बाल-दसा मुख-कमल विलोकत, कछु जननी सौं बोलै री।
- प्रगटति हँसत दँतुलि, मनु सीपज दमकि दुरे दल ओलै री।।
- सुंदर भाल तिलक गोरोचन, मिलि मसि-बिंदुका लाग्यौ री।
- मनु मकरंद अँचै रुचि कै, अलि-सावक सोइ न जाग्यौ री।।
- कुंडल लोल कपोलनि झलकत, मनु दरपन में झांई री।
- रही विलोकि विचारि चारु छवि, परमिति कहूँ न पाई री।।
- मंजुल तारनि की चपलाई, चित चतुराई करषै री।
- मनो सरासन धरें कर स्मर, भौंह चढ़ै सर बरषै री।।
- जलधि थकित जनु काग पोत कौ कूल न कबहूँ आयौ री।
- ना जानौ किहिं अंग मगन मन, चाहि रही नहिं पायौ री।।
- कहँ लगि कहौं बनाइ बरनि छवि, निरखत मति-गति हारी री।
- सूर स्याम के एक रोम पर देउँ प्रान बलिहारी री।।
|
|