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चरण कमल भी परम मनोहर एवं रत्न जटित नूपुरों से मण्डित हैं। जवा पुष्प के समान लाल-लाल चरण तल अनेक चिह्नों से सुशोभित हैं। चक्र, अर्द्ध चन्द्र, अष्ट कोण, त्रिकोण, यव, आकाश, छत्र, कलश, शंख, गोष्पद, स्वस्तिक, अंकुश, कमल, धनुष एवं जम्बू फलों की कितनी मनोहर कान्ति है! अरुण चरणों की अंगुलियों के नख चन्द्रमाओं के समान प्रतीत हो रहे हैं। उनकी शोभा अपूर्व है। विलक्षण प्रेम एवं आनन्द के सिन्धु हैं ये!’ अवश्य ही पुर सुन्दरियों की इस भावना का उद्वेलन होने में अभी किंचित विलम्ब है। पहले पावस में रस की सरिता प्रसरित होगी, उसमें अवगाहन करेंगी। फिर क्रमशः शरत, हेमन्त, शिशिर, वसन्त एवं ग्रीष्म में उनकी भावना तदनुरूप उद्दीपनों से सुसज्जित होगी। वे गोप सुन्दरियाँ विविध भावमय श्रृंगार धारण करेंगी। पुनः पावस का विकास होगा और उसके अवसान होने पर शारदीय सुषमा व्रजपुर को अलंकृत करेगी और इन ऋतुओं में गोप-रामाओं का भी पुनः भावमय अभिषेक होगा तथा ये नीलसुन्दर के प्रति आत्म समर्पण के योग्य वेषभूषा से विभूषित होंगी। इतने दिनों बाद अब से लगभग पंद्रह मास के पश्चात, तब कहीं अवसर आयेगा; इनकी यह भावना अन्तस्तल से बाहर की ओर अनर्गल प्रसरित होने लगेगी। इस प्रबल प्रवाह में लोक लज्जा का बाँध भी टूट पड़ेगा और ये मुक्त कण्ठ से पुकार उठेंगी-
- नंदलाल सौं मेरौ मन मान्यौ, कहा करैगौ कोय री।
- हौं तौ चरन-कमल लपटानी, होनी होय सो होय री।।
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