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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
70. कालिय द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति और श्रीकृष्ण की उसे ह्नद छोड़कर समुद्र में चले जाने की आज्ञा तथा गरुड़ के भय से मुक्ति दान; कालिय एवं उसकी पत्नियों द्वारा श्रीकृष्ण की अर्चना तथा उनसे विदा लेकर रमणक-द्वीप के लिये प्रस्तान
ह्नद के तट पर अवस्थित व्रजपुरवासी देख रहे हैं; अन्तरिक्षचारी देवगण देख रहे हैं - कालिन्द नन्दिनी के प्रवाह में एक वेग पूर्ण स्पन्दन हो रहा है, नहीं-नहीं, पत्नी-पुत्र-बन्धु-बान्धव के साथ कालिय यमुना प्रवाह के मार्ग से चला जा रहा है; आगे सुरसरि की धारा का अनुसरण करते हुए समुद्र के रमणक द्वीप में चले जाने के उद्देश्य से उसने इस जल पथ का ही आश्रय लिया है-
और तपन तनया श्रीयमुना के ह्नद का वही जल प्रवाह तत्क्षण निर्विष ही नहीं अपितु सुधा-मधुर बन गया है-
अब विविध श्रृंगार से सुशोभित श्रीकृष्णचन्द्र तो तट की ओर अग्रसर हो रहे हैं तथा अन्तरिक्ष एवं वृन्दाकानन का कण-कण देवों के जयघोष से नादित हो रहा है-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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