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‘कालिय! सुनो, जो व्यक्ति सायं-प्रातः तुम्हारे प्रति किये हुए मेरे अनुशासन-वाक्य को उच्चारण करते हुए मेरी इस लीला का स्मरण करे, अथवा मेरी इस आज्ञा का या मेरे इस सम्पूर्ण चरित्र का स्मरण एवं कीर्तन करे, उसे सर्पों से भय न हो! देखो, यह ह्नद मेरा विहार स्थल बन चुका हैं जो कोई इसमें विधिवत स्नान करके, इस ह्नद के जल से देव, ऋषि एवं पितृगणों का तर्पण करेगा एवं तीर्थोपवास की विधि से उपवास कर मुझे स्मरण करता हुआ मेरी पूजा करेगा, वह समस्त पापों से पूर्णतया मुक्त हो जायगा।’
- यह प्रसंग गावे जो सुनई।
- तुम तें भय सो कबहुँ न लहई।।
- एहिं सर जो मज्ज्न कोउ करिहै।
- देव-पितर हित पिंड जु भरिहै।।
- व्रत करि मम सुमिरन अरु ध्याना।
- जे करिहै तेहि पाप नसाना।।
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