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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
69. नाग पत्नियों का भी अपने शिशुओं को लेकर श्रीकृष्ण की शरण में उपस्थित होना, स्तुति एवं प्रणाम करना और पति के जीवन की भिक्षा माँगना; श्रीकृष्ण का करुणापूर्वक कालिय के फनों से नीचे उतर आना
‘हे परम दयालो! सर्वज्ञ शिरोमणे! इस सर्प का प्राणान्त, बस, हो ही चला है। कृपा, कृपा करो, नाथ! साधु पुरुष हम अबलाओं पर सदा ही दयार्द्र रहते हैं। बस, अब, अब विलम्ब मत करो, भगवन्। प्राण तुल्य पति को हमें भिक्षा में दे दो, दयामय! ‘स्वामिन! हम तुम्हारी दासियाँ तुम्हारे समक्ष उपस्थित हैं; हमारे योग्य सेवा का निर्देश करो, देव! क्योंकि तुम्हारे आदेश का श्रद्धा सहित पालन करते ही कोई भी व्यक्ति समस्त भय समूहों से त्राण पा लेता है, प्रभो!-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10।16।49-53)
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