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आकाश से अभी भी प्रसूनों की वृष्टि हो ही रही है। देवद्रोही इस कालिय के गर्व को प्रभु ने हर लिया- यह दर्शन देव-समाज के कण-कण को आनन्दित कर दे रहा है। उन्हें तृप्ति नहीं हो रही है नीलसुन्दर के चरण सरोरुह में कुसुमों का अभिनन्दन समर्पित करने से। और क्या पता शेषशायी पुराण पुरुष के पादारविन्द में पाद्य, अर्ध्य, सुमन समर्पित करने का अवसर तो उन्हें कितनी बार मिल चुका है; पर वहाँ इस नृत्य परायण नीलसुन्दर की बंकिम झाँकी कहाँ? और इसी उल्लास में ही उनके पुष्पवर्षण-पुराण-पुरुष के पूजन का विराम नहीं हो रहा है!-
- ........पुष्पै: प्रजूजित इवेह पुमान् पुराण:॥[1]
- तेहि-तेहि समै देव-गंधर्बा।
- किंनर, चारन, मुनिगन सर्बा।।
- जसुदानंदन कहँ सब आई।
- पूजहिं सुमन सुरभि सुख पाई।।
- सेषासन जनु पुरुष पुराना।
- पूजेउ एहि बिधि करि सनमाना।।
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