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अस्तु, रोहिणी नन्दन के उस आश्वासन का प्रभाव इतना अवश्य हुआ कि कृष्णगत प्राण व्रजेश, व्रजरानी, व्रजपुर वासी कालियह्नद में प्रविष्ट न हुए; सबको रोक लिया बलराम ने। किंतु यह भी वे कर सके अपनी भगवता से अवस्थित होने पर ही, ऐश्वर्य का बल लेकर ही। जो हो, व्रजरस की यह विशुद्ध निराविल धारा सामने अनन्त देव के लोकोत्तर-तेज समन्वित मुख मण्डल से नित्सृत आश्वासन को ऐश्वर्य-पर्वत को लाँघ न सकी, एक बार रुद्ध हो गयी, यह सत्य है-
- कृष्णप्राणान्निर्विशतो नंदादीन् वीक्ष्य तं ह्रदम्।
- प्रत्यसषेधत् स भगवान् राम: कृष्णानुभाववित्॥[1]
- नंद आदि जे गोप घनेरे।
- धसत नीर बलजू गहि फेरे।।
- जानत प्रभु कौतुक भलि रीती।
- सुंदर बचन कहे करि प्रीती।।
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