श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
66. अपशकुन देखकर नन्द-यशोदा एवं बलराम जी का तथा अन्य व्रजवासियों का नन्द नन्दन के लिये चिन्तित हो एक साथ दौड़ पड़ना और श्रीकृष्ण के चरण-चिह्नों के सहारे कालीदह पर जा पहुँचना और वहाँ का हृदय विदारक दृश्य देखकर मूर्च्छित हो गिर पड़ना
अस्तु, गोपवास से बाहर आते ही पुरवासियों की दृष्टि नीलसुन्दर के मनोहर पद-चिह्नों पर जा पड़ी। वृन्दाकानन की धरा पत अंकित वे चिह्न मानो स्पष्ट ही संकेत कर रहे थे। ‘आओ, आओ, अपने नीलमणि को हमारे सहारे ढूँढ़ लो।’ उनमें संशय के लिये स्थान नहीं था, स्पष्ट ही उन पद चिह्नों में श्रीकृष्णचन्द्र के चरण तल के चिह्न व्यक्त हो रहे थे। साथ ही रवि नन्दिनी श्रीयमुना के तट की ओर जाने वाले मार्ग में ही वे अंकित थे। फिर तो यह प्रत्यक्ष हो ही गया कि आज श्रीकृष्णचन्द्र गिरिराज की ओर न जा कर कलिन्द तनया की ओर गो संचारण करने गये हैं। पुरवासियों ने उन चिह्नों का ही अनुसरण किया और उसके सहारे ही देखते-देखते वे यमुना-तट पर आ पहुँचे। यह बात नहीं कि केवल श्रीकृष्ण चरण-चिह्न ही वहाँ व्यक्त हुए हों। असंख्य गोप शिशुओं के एवं उनसे परिचालित असंख्य धेनु समूहों के पद चिह्न भी वहाँ अंकित थे; और उनके अन्तराल में सम्पृक्त हो रहे थे अब्ज, यव, अंकुश वज्र, ध्वज आदि चिह्नों से विभूषित श्रीकृष्णचन्द्र के चरण चिह्न। इस प्रकार गो संचारण का वह वन-पथ असंख्य चिह्नों से परिव्याप्त था। किंतु समस्त पुरवासियों, व्रज दम्पति की आँखें केन्द्रित हो रही थीं एकमात्र गोप समाज के उन अनोखे अध्यक्ष के अब्ज-यवादि-परिशोभित ललित पद चिह्नों पर ही; उनके प्राण स्पर्श कर रहे थे एकमात्र उनको ही। इसके अतिरिक्त, असंख्य गो धन भी इस मार्ग से ही अग्रसर हो चुका है, अन्य गोप शिशु भी इस पथ से ही गये हैं, उनके चिह्न भी यहाँ स्पष्ट व्यक्त हो रहे हैं- इसे वे देखकर भी न देख सके। कहीं भी वे भ्रमित न हुए। हो ही कैसे सकते, श्रीकृष्ण चरण-चिह्नों का प्रभाव ही निराला है; उन पर अपनी दृष्टि लगाये चलने वाले के मार्ग में कहीं कदापि भ्रम होता जो नहीं। उन चिह्नों को कोई भी प्राणी आच्छादित नहीं कर सकता, करना भी नहीं चाहता; सबके प्राणों की निधि हैं वे। और तो क्या, जड भावापन्न पवन से संचालित रजः कण भी उनकी स्पष्टता को लुप्त नहीं कर सकते। वे तो जहाँ जिस स्थल पर एक बार अंकित हो उठते हैं, वहाँ उनकी प्रतिष्ठा हो जाती है। अलंकार हैं वे उस स्थल के, भूमि के! तथा उनके सहारे, एकमात्र उन्हीं का निरीक्षण करते हुए चलने वालों के लिये श्रीकृष्णचन्द्र को ढूँढ़ लेना सदा ही सहज है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज