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और तो क्या, इस करुण चीत्कार को सुनकर अरण्य के पशु-मृग, मृगी आदि भी एकत्रित हो गये हैं; वे भी रो रहे हैं। विहंगमों का समूह तक आर्तस्वर में कोलाहल कर रहा है। मानो सचमुच ही व्रजपुर के स्थावर-जंगम जीवों के समस्त सुखों का अवसान हो गया हो-
- गावो वृषा वत्सतर्य: क्रंदमाना: सुदु:खिता:।
- कृष्णे म्यस्तेक्षणा भीता रुदत्य इव तस्थिरे॥[1]
- धेनु वत्स वृष जाति, करहिं सब्द करुना सहित।
- जनु रोषहिं बहु भाँति, देखि नाथ क्रीड़ा रहित।।
- जुरे धेनु के व्रन्द संघट्ट आवैं।
- करैं नाद कौं फेरि हुंकारि धावैं।।
- मृगी आदि पक्षी भये सोककारी।
- लखैं जीव संसार के बेसुखारी।।
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