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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
64. श्रीकृष्ण का कालिय के श्यानागार में प्रवेश और नाग वधुओं से उसे जगाने की प्रेरणा करना; नाग पत्नियों का बाल कृष्ण के लिये भयभीत होना और उन्हें हटाने की चेष्टा करना
अस्तु, नाग वधुएँ कातर हो कर बारंबार आग्रह करने लगती हैं- ‘रे बालक! तू भाग जा!’-
किंतु श्रीकृष्णचन्द्र तो वैसे ही हँस रहे हैं। इतना ही नहीं, निर्भय नेत्रों से नाग पत्नियों को ही समझा रहे हैं-
और वे सर्प वधुएँ उत्तरोत्तर व्याकुल होती जा रही हैं- कैसे शीघ्र-से-शीघ्र भगा दें इस हठी शिशु को! छलछलाती आँखों से बार-बार कंस को कोस रही हैं और नीलसुन्दर की मनुहार कर रही हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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