विषय सूची
श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
64. श्रीकृष्ण का कालिय के श्यानागार में प्रवेश और नाग वधुओं से उसे जगाने की प्रेरणा करना; नाग पत्नियों का बाल कृष्ण के लिये भयभीत होना और उन्हें हटाने की चेष्टा करना
अपितु विस्मय योग्य यदि कुछ है तो यह है कि अनन्त-ब्रह्माण्ड भाण्डोदर के अतिशय वेग से कूदने पर भी जल इतना-सा ही प्रसरित हुआ! सो भी बाह्य दृष्टि से ही! अन्यथा स्पष्ट इसका समाधान दीख रहा है- वह देखो, इधर तो असंख्य गोप शिशु विस्फारित-नेत्र हुए अपने कोटि-कोटि प्राणधन नीलसुन्दर की ओर देख रहे हैं, उनकी पङ्क्तियाँ खड़ी हैं, उन्होंने सीमा जो बाँध दी है। उनके पार तो क्या, उन्हें भी यह विषोर्मि स्पर्श नहीं कर सकती; उनके इस ओर ही कुछ हाथ दूर रहकर ही, स्थल पर लोट रही है- नहीं-नहीं कालिय की भावी विकलता की मानो सूचना दे रही है। तथा उस ओर कालिन्द कन्या का मञ्जुल प्रवाह है, वह अब क्षण भर के लिये भी इससे अधिक सीमा में विषसिक्त क्यों हो! यह चार सौ हाथ का विषप्लावन भी हुआ है उद्देश्य विशेष से ही; यह तो आवश्यक है। उन विचरण करती हुई कालिय-पत्नियों को श्रीकृष्णचन्द्र इसी मिससे एकत्र जो कर लने चाहते हैं। इन नाग वधुओं के हृदय में अपने अनन्त ऐश्वर्य, अपनी सम्पूर्ण भगवत्ता की भावना उदय हो जाने से पूर्व वे उसे विशुद्ध लीलारस का दान देना चाहते हैं। महामहेश्वर व्रजराज नन्दन की मुग्धता-सम्पुटित भंगिमाओं का रस-सुख निराला ही होता है। अतिशय महान भाग्यशाली कतिपय जन ही एकमात्र उनकी कृपा से इसकी कदाचित कोई झाँकी पाकर कृतार्थ होते हैं। अत्यन्त क्रूर-हृदय कालिय तो इसका सर्वथा अनधिकारी है, उसका तो यह सौभाग्य ही नहीं कि वह अनन्तैश्वर्यनिकेतन गोकुलेन्द्र नन्दन के ऐश्वर्य-विहीन मधुर बाल्य लीला-रस का आस्वादन ले सके। हाँ, उन नाग बधुओं के अन्तस्तल में एक ऐसी चिरसंचित लालसा अवश्य है और उसके पूर्ण होने का अवसर भी उपस्थित है। अतएव नागमन्थन होने से पूर्व भक्तवाञ्छाकल्पतरु प्रभु श्रीकृष्णचन्द्र पहले उनका ही मनोरथ पूर्ण करने चलते हैं। और इसीलिये अकस्मात् ह्रद में एक विशाल हिण्डन उत्पन्न कर, इसके द्वारा ‘कालिय (उनका पति) निद्रा से जाग उठा है’ यह भ्रम उत्पन्न कर उन्हें अपने पति के शयनागार में ही बुला लेने के उद्देश्य से यह जल इतना आलोडित कर दिया गया है- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज