विषय सूची
श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
63. श्रीकृष्ण का कालिय नाग पर शासन करने के उद्देश्य से कालिय ह्नद के तट पर अवस्थित कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर वहाँ से कालिय ह्नद में कूद पड़ना
अस्तु, गोप शिशुओं के द्वारा प्रशंसा-गीत विराम होते-न-होते- और कुछ भी लीला होने से पूर्व ही- श्रीकृष्णचन्द्र ने कालिय ह्रद की ऐसी भयावह परिस्थिति पर एवं साथ ही आकुल प्रतीक्षा में अवस्थित उस सुन्दर मनोहर कदम्ब तरु पर अपनी कृपा भरी दृष्टि डाल ही दी- नहीं-नहीं, उनकी ऐश्वर्य शक्ति ने ही अवसर देखकर अपनी विनम्र सेवा समर्पित करने की भावना से नीलसुन्दर के नेत्र उसकी ओर फेर दिये। फिर तो तत्क्षण ही उनके हृत्तल के स्रोत कुछ क्षणों के लिये ऐश्वर्य संवलित हो उठे, व्रजेन्द्र नन्दन श्रीकृष्णचन्द्र के अन्तस्तल में अब यह झंकृति होने लग गयी-
‘इसी उद्देश्य से तो इस व्रज में मेरी यह प्रकट लीला है, मैंने गोपजन्म स्वीकार किया है कि इस कुमार्ग गामी दुरात्माओं का निग्रह करूँ। बस, ठीक है; शिशु लीला के आवेश में ही मैं इस कदम्ब पर चढ़ जाऊँगा और फिर इस कालियह्रद में कूदकर कालियसर्प का दमन करूँगा।’ |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (हरिवंश, विष्णुपर्व 11। 58-59)
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |