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- जमुनहिं मिल्यौ निकट ही महा।
- अति अगाध ह्रद कहियै कहा।।
- विष की आगि लागि जल जरै।
- उड़ते खग जहँ गिरि गिरि परै।।
- पवन रासि उठि सुठि लहरैं।
- तिन तैं विषकी फुही जु फहरैं।।
- इक जोजन के थिर-चर जंत।
- जरि-जरि, मरि मरि गए अनंत।।
- जो बृंदाबन योग्य न हुते।
- ते तब बिष-जल-ज्वाला हुते।।
- जमुन धार कहँ तजहिं अगम दह भरिब धनुष सत।
- तहँ अहि करहिं प्रवास कोह काली दुर्मद मत।।
- लहरि लोल मिलि अनिल चलत, जब तपतु सकल बन।
- उठति बिसम बिस ज्वाल जरत नभ उड़त बिहगगन।।
- तट निकट बिटप झौंके जहर, झार-भार नहिं सहि सकत।
- इहि भाँत अमित उतपात लखि जगत-तात कूदन तकत।।
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