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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
9. शिशु श्रीकृष्ण का अन्नप्राशन-महोत्सव, कुबेर के द्वारा गोकुल में स्वर्ण वृष्ठि
यथासमय व्रजरानी नित्यकर्म से निवृत्त हो कर पुत्र को गोद में लिये आँगन में चली आती है। गोपांगनाओं की अपार भीड़ उन्हें चारों ओर से घेर लेती है। निकटतम कुटुम्बियों को नन्दरानी ने दासी भेजकर नियन्त्रित किया है। वे सब आ गयी हैं। व्रजरा नीएक बार भंडार की ओर जाती है। वहाँ पुत्र को गोद में लिये श्री रोहिणी जी सारी व्यवस्था कर रही हैं-
श्री रोहिणी जी का यह परिश्रम देख कर व्रजरानी की आँखों में स्नेह-जल भर आता है। सजल नेत्रों से वे कुछ क्षण रोहिणी जी की ओर देखकर फिर उन निमन्त्रित कुटुम्बी व्रज वधुओं की ओर देखने लगती है। इतना संकेत पर्याप्त है। वे शतशः व्रज वधुएँ तुरंत ही पकवान बनाने में जुट पड़ती हैं।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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