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अचानक तृणग्रास मुख में लिये ही गौएँ बिदक गयीं। वे अब तक तो शान्त भाव से तृण चरती रहकर भी अपने पालक नीलसुन्दर की ओर सिर उठा कर देख लेती थीं; किंतु हठात उनकी आँखें इससे भी अधिक सुन्दर एक अन्य तृणसंकुल भूमिखण्ड की ओर बरबस जा लगीं-नहीं-नहीं, आकर्षित कर दी गयीं। अचिन्त्य लीला महाशक्ति ने निर्धारित योजना के अनुरूप डोरी खींच ली थी और इसलिये वे उस ओर ही भाग चलीं, बिखर गयीं। पर उस ओर तो सघन वन है, उनको उस ओर से नियन्त्रित कर लेना नितान्त आवश्यक है। अत एव नीलसुन्दर की क्रीड़ा भी स्थगित हो गयी और गोप शिशु भी गायों को लौटा लेने के उद्देश्य से उस ओर ही दौड़ चले-
- बगरि गईं गैयाँ बन-बीथिनि, देखीं अति बहुताइ।
- कोउ गए ग्वाल गाइ बन घेरन, कोउ गए बछरु लिवाइ।।
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