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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
श्रीकृष्णका व्रजागमन69 मोहन श्रेष्ठ नट-जैसा वेष धारण किये व्रज आ रहे है । मयूरपिच्छ मुकुट मकराकृत कुण्डल और घुँघराली अलके मुखपर शोभा पा रही है । टेढी भौंहे और अत्यन्त चञ्चल नेत्र है इस शोभापर ( तुलना करनेके लिये ) एक उपमा दौडती ( सूझती ) है कि धनुष देखकर खञ्जनका जोडा डरकर उडनेके लिये व्याकुल होते हुए भी उड न पाता हो । अनुपम ओठ वंशीमे सुर भरते हुए आलाप लेकर गौरी राग बजा रहे है गायोंके झुंड और गोप-बालकोंके साथ गाते हुए अत्यन्त आनन्द बढाते ( बडी प्रसन्नता प्रकट करते ) है । कमरमे सोनेकी करधनी और पीताम्बर पहिने नाचते एवं अत्यन्त मन्द ( कोमल ) स्वरमे गाते है । सूरदासजी कहते है कि श्यामसुन्दरके प्रत्येक अंगका माधुर्य ऐसा ( आकर्षक ) है कि उसे देखना व्रजवासियोंके मनको ( अतिशय ) प्रिय लगता है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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