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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी41 ( जब ) संध्याके समय गोपकुमारों तथा गायोंके साथ श्यामसुन्दर वनसे सजकर व्रजमे आते है ( तब उनको ) देखकर मेरे नेत्र सुखी होते है । वक्षःस्थलपर गुञ्जाहार और वनमाला तथा मस्तकपर मुकुट धारण किये रसमय मुरली बजाते है तब उनका करोडो सूर्योंके समान प्रकाशमान मुख करोडों चन्द्रोको भी लज्जित करता है । अनुपम शोभामय नटवर वेष सभीके मनको भाता है; ( जब ) सब गोपकुमार सखा ( मोहनके ) मुखको निहारते है तब उनके हृदयमे आनन्द समाता नही । चन्दनकी खौर लगाये तथा कछनी बाँधे हुए वे देखते ही मनको प्रिय लगते है । सूरदासजी कहते है कि श्यामसुन्दर गोकुल नगरकी स्त्रियोंके दिनभरका वियोग नष्ट करते हुए आते है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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