श्रीकृष्ण माधुरी पृ. 46

श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास

अनुवादक - सुदर्शन सिंह

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राग कल्यान

37
सुंदर स्याम सखा सब सुंदर सुन्दर बेष धरैं गोपाल।
सुंदर पथ सुंदर गति आवन सुंदर मुरली शब्द रसाल ॥1॥
सुंदर लोग सकल ब्रज सुंदर सुंदर हलधर सुंदर चाल।
सुंदर बचन बिलोकनि सुंदर सुंदर गुन सुंदर बनमाल ॥2॥
सुंदर गोप गाइ अति सुंदर सुंदरि गन सब करति बिचार।
सूर स्याम सँग सब सुख सुंदर सुंदर भक्त हेत अवतार ॥3॥

श्यामसुंदर तो सुन्दर हैं ही ( उनके ) सभी सखा सुन्दर है और इतने सौन्दर्यपर भी उन्होंने गोपाल ( ग्वालिये ) का वेष धारण कर रखा है । सुन्दर मार्ग सुन्दर गतिसे आना सुन्दर मुरली जिसके शब्द रसमय हैं । व्रजके सभी लोग सुन्दर है पूरा व्रज सुन्दर है श्रीबलराम सुन्दर है और उनकी गति भी सुन्दर है । वाणी सुन्दर देखनेकी छटा सुन्दर सुन्दर सूतमें गुथी वनमाला सुन्दर है । गोप सुंदर तथा गाये अत्यंत सुन्दर है व्रजकी सुन्दरियोंका समुदाय ( श्यामकी इसी सुन्दरताका ) विचार किया करता है । सूरदासजी कहते है कि श्यामसुन्दरके साथ ( ही ) सब ( प्रकारके ) सुख सुन्दर है ( और ) सुन्दर भक्तोंके लिये ही उनका ( यह ) सुन्दर अवतार है ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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