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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल30 प्रातःकाल होनेपर श्यामसुन्दरका मुख देखते हुए यशोदाजी आनन्दित और नन्दजी ( उसी प्रकार ) हर्षित हो रहे हैं जैसे सूर्यकी किरणोंसे कमलको खिला देखकर हृदयमे आनन्द होता है । माता मुख खोलकर जगाती हुई कह रही हैं- ’ आनन्दकन्द ! मैं तुमपर बलिहारी जाती हूँ जागो ! ’ ( उस समय ऐसी शोभा होती है ) मानो सुरोद्वारा समुद्र-मन्थनके समय फेन फट जानेपर पूर्ण चन्द्रमा दिखलायी पडा हो । जिसके गुण शंकरजी शेषनाग और ब्रह्मादि देवता गाते है तथा वेदोंके मन्त्र ’ नेति-नेति ’ ( ऐसा नही वैसा नही ) कहकर ( निषेधमुखसे ) वर्णन करते है सूरदासजी कहते है सुना है व्रजमे वे ही पूर्ण परमानन्द गोपालके रुपमे प्रकट हुए है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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