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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल27. कोई गोपी कहती है- सखी ! श्रीहरिके चन्द्र-मुखमे दधि पुत्रके अंदर पिताको जाते देखो । दूसरा आश्चर्य यह देखो कि शत्रु चन्द्र में शत्रु राहु प्रवेश कर रहा है मुख-चन्द्रमे श्यामवर्ण हाथरुप राहु समा रहा है । दधि दही-सने मुख पर तोता नासिका तोतेपर दो कमल नेत्र और उन कमलोके दो पत्ते कान है । यह शोभा देखते हुए गोप इतने प्रफुल्लित हो रहे है कि शरीरमे उमंग समाती नही । बार-बार देख और चित्तमे अपने लालकी छटाका विचार करके व्रजराज नन्दजी मुसकरा रहे है । ’ सूरदासजी श्यामसुन्दरके इसी रुपका चित्तमे ध्यान लाकर उनपर बलिहारी जाते है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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