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बरनौ बालवेष मुरारी।
थकित जित तित बपन केचहुँ दिसा छिटके झारि।
सीस पर धरि जटामनु सिसु रुप कियौ त्रिपुरारी ॥2॥
तिलक ललित ललाट केसर बिंदु सोभाकारि।
रोष अरुन तृतीय लोचन रह्यौ जनु रिपु जारि ॥3॥
कंठ कठुला नील मनिअंभोज माल सँवारि।
गरल ग्रीवकपाल उरइहिं भाइ भए मदनारि ॥4॥
कुटिल हरिनख हिए हरि के हरषि निरखित नारि।
ईस जनु रजनीस राख्यौ भाल तैं जु उतारि ॥5॥
सदन रज तन साम्य सोभित सुभग इहिं अनुहारि।
मनौ अंग बिभूति राजित संभु सो मधुहारि ॥6॥
त्रिदस पति पति असन कौं अति जननि सौं करै आरि।
सूरदास बिरंचि जाकौं जपत निज मुख चारि ॥7॥