श्रीकृष्ण माधुरी पृ. 33

श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास

अनुवादक - सुदर्शन सिंह

Prev.png

बाल-छबि-वर्णन

राग बिलावल

25
बरनौ बालवेष मुरारी।
थकित जित तित बपन केचहुँ दिसा छिटके झारि।
सीस पर धरि जटामनु सिसु रुप कियौ त्रिपुरारी ॥2॥
तिलक ललित ललाट केसर बिंदु सोभाकारि।
रोष अरुन तृतीय लोचन रह्यौ जनु रिपु जारि ॥3॥
कंठ कठुला नील मनिअंभोज माल सँवारि।
गरल ग्रीवकपाल उरइहिं भाइ भए मदनारि ॥4॥
कुटिल हरिनख हिए हरि के हरषि निरखित नारि।
ईस जनु रजनीस राख्यौ भाल तैं जु उतारि ॥5॥
सदन रज तन साम्य सोभित सुभग इहिं अनुहारि।
मनौ अंग बिभूति राजित संभु सो मधुहारि ॥6॥
त्रिदस पति पति असन कौं अति जननि सौं करै आरि।
सूरदास बिरंचि जाकौं जपत निज मुख चारि ॥7॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः