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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ3 देवकीजी मन -ही -मन चकित हुईं। ( वे वसुदेवजीसे बोली - ) ’ पुत्रका मुख आकर क्यो नही देखते ? हे भगवन ! ऐसा पुत्र होते तो कही नही देखा। इनके सिरपर मुकुट है पीला उपरना ( दुपट्टा ) ओढे है हृदयमे भृगुका चरणचिह्न है और चार भुजाएँ धारण किये है। तब श्रीहरिने पूर्वजन्मकी कथा * सुनाकर कहा - ’ तुमने इसी वेषमे मुझे ( पुत्ररुपमे ) माँगा था। भगवानने ( अपनी मायासे वसुदेवजीकी ) हथकडी -बेडी खोल दी ( कारागरके ) पहारेदारोंको सुला दिया और द्वारके किवाड भी ( अपने -आप ) खुल गये। ’ मुझे तुरंत गोकुल पहुँचा दो ’ यह कहकर ( भगवानने ) शिशुका रुप धारण कर लिया। ( भगवानकी वह बात सुनते ही ) वसुदेवजी उठे और हर्षित होकर ( गोकुलमे ) नन्द -भवनको चले गये। वहाँ अपने बालकको रखकर और ( यशोदाजीकी कन्यारुपमे जन्मी ) महामाया भगवतीको ले आकर -सूरदासजी कहते है - वसुदेवजी मथुरा मे रहने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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