श्रीकृष्ण माधुरी पृ. 26

श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास

अनुवादक - सुदर्शन सिंह

Prev.png

राग आसावरी

( कोई गोपी कहती है- सखी ! ) आज मै नन्द-भवनमे गयी थीसो उस घरके आनन्दका क्या वर्णन करु? वहाँ चारो ओर चारो प्रकारकी लक्ष्मी ( सम्पत्तिसुन्दरताकीर्ति और अनुकूल स्वजन ) दीख पडती थी और करोडो गाये दुही जा रही थी । जहाँ-तहाँ दहीकी मथानियाँ घूम रही थीजिनका शब्द सुनकर मेघ-गर्जना भी लज्जित हो जाती है । उस भवनकी शोभा क्या वर्णन करुँवह तो वैकुण्ठसे भी अधिक शोभित था । ( यशोदाजीने मुझे ) नयी बहू समझकर वहाँ बुला लियाजहाँ कुँवर कन्हाई खेल रहे थे । उनका मुख देखते ही मुझे तो मोहिनी-सी लग गयी । ( मै मुग्ध हो गईजिससे ) उस रुपका वर्णन नही हो सकता । भौंहतक लटकन लटक रहा थाजिसमे अनेक रंगोकी मणियाँ पिरोई हुई थी । वे ऐसी लगती थीए मानो लाल ( कुँवर ) के ललाटपर बृहस्पतिशनि और शुक्र एकत्र होकर शोभा दे रहे हो । गोरोचनके तिलकके पास ही कज्जलका बिन्दु ( डिठौना) लगा था मानो कमलका पराग चाटकर भौंरेका बच्चा सो गया है और अभी जगा नही है। चन्द्रमुखपर बडे-बडे नेत्र है; नाकमे मोतियोंकी बाली झूल रही है मानो चन्द्रमाने अपने सम्बन्धी ( अपने पिता समुद्रसे उत्पन्न छोटे भाई ) समझकर उन्हे साथ ले लिया हो । श्यामके वक्षस्थलपर मोतियोंकी माला शोभित है और उसके बीचमे बघनखा ( ऐसी ) शोभा दे रहा है मानो द्वितीयाका चन्द्रमा नक्षत्रोंके साथ हो; किंतु ( उसकी ) यह उपमा भी ठीक नही कही जा सकती । अंग-प्रत्यंगकी शोभा समुद्रके समान अपार होनेके कारण ( उसका ) वर्णन करते हुए अन्त नही मिलता । जहाँ देखती थीमन वहींका हो जाता था मानो भरे ( धन-धान्यसे पूर्ण ) घरका चोर हो ( जो एक-से-एक बढकर वस्तुओंको अदल-बदल करनेके कारण कुछ भी चुरा न सके ) अंग-प्रत्यंगकी शोभा का वर्णन क्या करुं मानो भाव ( प्रेम ) की जलराशि भरी हो। गोपाललालकी बालोचित शोभाका वर्णन करनेमे तो कविकुलका उपहासमात्र बनना होगा ( कि अवर्णनीय वर्णनका मैंने दुस्साहस किया है ) । यदि मेरी आँखोको जिह्वा होती तो अवश्य उस रुपका भलीभाँति वर्णन कर सकती थी । ( क्योंकि देखा तो नेत्रोंने है । मैं तो इतना ही कहती हूँ- ) यशोदाका ( वह ) लाल चिरंजीवी हो ! ( जिसपर ) सूरदास बलिहारी है ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः