विषय सूची
श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हारौ11 श्रीयशोदाजी नन्दनन्दको गोदमें लिये है। ( श्यामसुन्दरके शरीरपर ) पीला झगला ( बिना बाँहका कुर्ता ) ऐसी शोभा पा रहा हैमानो मेघपर बिजली सुभोभित हो। काले रेशममे पिरोई हुई मोतियोकी माला धारण की हुई है( जो ऐसी लगती है ) मानो स्वर्णसे आकर गंगाजी समुद्रमे मिल रही हैं। मचलते हुए चञ्चल हाथ चला-चलाकर श्रीनन्दरानीके मुखको धीरेसे ( जाकर ) छू लेते है; ( उस समय ऐसा जान पडता है ) मानो अमृतरसके लोभसे सर्प सुन्दर श्रेष्ठ चन्द्रमाको बार-बार चाटता हो। गूँगे जैसे ( अर्थरहित अस्पष्ट ) शब्दोसे ऐसा अनुराग उत्पन्न कर रहे है ( ऐसे प्रिय लगते हैं ) मानो कमलमे बंद हुए भ्रमर गुँजार कर रहे हो। सूरदासके ये स्वामी धन्य हैजिन्हे श्रीयशोदाजी और व्रजराज नन्दजीने बहुत तप करनेके बाद महान भाग्यसे ( पुत्ररुपमे ) पाया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
-
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज