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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सोरठ117 ( गोपी कह रही है- ) सखी ! श्यामका मुख है अथवा मोहिनी ? ये जब ( उस मुखसे ) कुछ बोलते है तब ( उनके ) शब्द मन्त्रकी भाँति लगते ( प्रभाव करते ) है ( जिसके कारण ) सारी गति ( क्रियाशक्ति ) और बुद्धि ( विचारशक्ति ) भूल जाती है । भौंहेके ऊपर जहाँ-तहाँ बिखरी घुँघराली अलके शोभा दे रही है इन्हींमे फँसाकर श्यामने हमारा मन खींच लिया है इनकी चतुरता अब मैने समझी । मनोहर कपोलोंपर कुण्डल झलक रहे ( आभा डाल रहे ) है इनका भेद भी मैं पा गयी । सूरदासजी कहते है कि ये युवतियोंका मन मोहित करनेवाले श्यामसुन्दरके साथ रहकर उनकी सहायता करते है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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