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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग टोडी109 गोपियाँ हरिका मुख देख रही है । घुँघराली अलके भौंहेपर बिखर रही है; उनकी उस शोभापर वे अपना तन-मन न्योछावर कर रही है । अमृतपूर्ण मुखके दोनों नेत्र-कमलोंकी दोनो भौंहे ( इस प्रकार ) रक्षा कर रही है मानो भौंरे मधुपान करनेके लिये आते हुए उन्हे देखकर मनमे अत्यन्त डर रहे हो । नेत्रोंपर लटकी हुई एक-एक अलककी यह एक उपमा सूझती है मानो आकाशसे उतरकर नागिने कमलदलका ( अपने ) फणसे स्पर्श कर रही हो । ओठपर वंशी रखे उसे सुन्दर ध्वनिसे पूर्ण कर रहे है और मन्द-मन्द स्वरमे गा रहे है । सूरदासजी कहते है कि ( इस प्रकार ) श्यामसुन्दर चतुर स्त्रियोंके चञ्चल चित्तको चुरा रहे है । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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